अनमने मन की धरा पर,
मुस्कुराकर
दीप यह किसने जलाया
कौन आया?
खिलखिलाती धूप अगहन की कुंवारी
ज़िन्दगी के शुष्क आँगन में उतारी
कौन बदली नीर यह बरसा गयी है
वादियों पर आ गयी फिर से खुमारी
रात के सूने पहर में
चांदनी सा
कौन आकर मुस्कुराया
कौन आया?
जम गया वातावरण में फिर हरापन
आ गया है द्वार अपने आप हरापन
प्यार के सन्देश देते हैं सितारे
कर दिया भटकी हवाओं ने समर्पण
सुप्त वीणा के हृदय में
चेतना का
तार किसने खन-खनाया
कौन आया?
वेदना के मिट गए बदल घनेरे
दिखते हैं स्वप्न में केवल सवेरे
फिर हुई आँखें शरारत पर उतारू
इन्द्रधनुषी हो गए अरमान मेरे
प्रण किया था
फिर न गाऊंगा कभी वह
गीत फिर से गुनगुनाया
कौन आया?
----मयंक श्रीवास्तव
भोपाल मध्यप्रदेश
मयंकजी की सुन्दर रचना पढवाने के लिये विक्की बाबू का साधुवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteaap sbhi ka bahut bahut dhanywaad ji
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