उतर आए तुम ही आँखों में.
कागज़ ऊपर फैल गए तुम,
श्याम रूप धर कर स्याही का.
देखा जब जिस और भी मैंने,
मुझे घूरते पाया तुमको.
रहा भागता तुमसे हरदम,
मन से निकल नहीं पाए तुम.
अब भी दिल को समझाता हूँ,
कभी तो मुझको अपनाओगे.
जब भी लौट के तुम आओगे,
वहीँ खड़ा मुझको पाओगे.
V.B. Series
Bahut khoob.shandaar.
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteowesume,bahut hi mere words few hai kehne k liye lazwaab
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्त।
Deletebahut khub vikky bhai..... aapki 1998 ki tum laut aao bhi padi us rachna ne bahut prabahwit kiya ...... badhai....
ReplyDeleteआपका बहुत सारा आभार आदरणीय।
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