Friday, December 28, 2018

कल और आज

एक घिसा हुआ टायर
तीन-चार कंचे
टूटा दांत
और उन्मुक्त हँसी।
कितने अमीर होते थे
बचपन में हम भी।

माचिसों के ताश
लूटी गयी पतंगें
इश्तिहारी पर्चे
कुछ चिकने से बटन
और बीज कुछ सलोने से

कितना कुछ हुआ करता था
सहेजने के लिए।

आज जब 'निम्बल'
झांकता है पुराने एल्बमों में।
भीतर कुछ,
सुलग सा जाता है।

शायद वक़्त की रफ़्तार,
आगे निकल गयी मुझसे।
शायद जवानी
बहुत कुछ ले गयी।

-निम्बल