Friday, September 30, 2011

कहाँ खो गयी,हंसी तुम्हारी?


कहाँ खो गयी
हंसी तुम्हारी,
कौन ले गया?


शशिमुख ऊपर
मैलापन सा
कौन दे गया?


कल तक
जब तुम
मुस्काते थे


मादकता
हर इक के मन में,
भर जाते थे.


दंत पंक्ति
जब तुम उज्ज्वल
दिखलाते थे.


अंतस तक के
घोर अँधेरे
मिट जाते थे.


सूनापन सा
कैसा मुख पर
अब छाया है.


रूखा सा
व्यवहार तुम्हारा
हो आया है.


लाली चेहरे वाली
आखिर
कौन ले गया.


नयन कुटी में
गहन उदासी
कौन दे गया.

Saturday, September 10, 2011

कब तक तड़पूं ?

कब तक तड़पूं ?
कितना तड़पूं ?
कोई बताये....
राह सुझाये....
कितना सह लूँ ?
कब तक बहलूँ ?
बहुत हो चुका...
बहुत खो चुका.
कहा कुछ नहीं
सहा बहुत है.
रहा कुछ नहीं
गया बहुत है.
कितना समेटूं?
कब तक सहेजूँ?
कोई सिखाये.....
मुझे बताये.