Saturday, September 10, 2011

कब तक तड़पूं ?

कब तक तड़पूं ?
कितना तड़पूं ?
कोई बताये....
राह सुझाये....
कितना सह लूँ ?
कब तक बहलूँ ?
बहुत हो चुका...
बहुत खो चुका.
कहा कुछ नहीं
सहा बहुत है.
रहा कुछ नहीं
गया बहुत है.
कितना समेटूं?
कब तक सहेजूँ?
कोई सिखाये.....
मुझे बताये.

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