Monday, February 07, 2011

क्या संसार बचेगा?

(नास्त्रेदमस)
टी. वी. पर अक्सर चर्चा आती रहती है कि क्या संसार बचेगा? माया कैलंडर और नास्त्रेदमस के अनुसार 28 दिसम्बर 2012 को संसार नष्ट हो जायेगा.
माया लोग कोलंबस की 1482 में अमरीकी खोज तक भारत से 10 गुना बड़े एरिया पर हजारों बरसों तक राज करते रहे.उन्हें यूरोपीय गोरों ने जमीन व सोने के लालच में स्पेनी लुटेरे सेनापति पिजारो ने समाप्त कर दिया. उन्होंने खुद का विनाश 200 वर्ष पूर्व देख लिया था. फिर 1520 में फ्रांसीसी भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी सामने आई.पहले यूरोपीयन भारत को ओरिएंट कहते थे.उन्होंने लिखा है 1950 के बाद ओरिएंट (भारत) में एक शक्तिशाली महिला शासक आएगी.बाद में पतन का शिकार होगी.फिर विरोधियों की फूट से दोबारा सत्ता में आएगी.वह 67 वर्ष की आयु में अपने घर में अपने अंगरक्षकों द्वारा मारी जाएगी.तब सदी बदलने में 16 वर्ष  रह जायेंगे.
1520 में इंदिरा जी व उनके पूर्वजों पंडित जवाहर लाल नेहरु,मोती लाल नेहरु व गंगाधर का नामो निशान तक नहीं था.उसने हिटलर व उसके कारनामों को 400 वर्ष पूर्व ही लिख दिया था.नाम हिस्टर लिखा.फिर लिखा कि नये देश (अमेरिका) के न्यूयार्क शहर में दो धातु के पक्षी चौरस मीनार जैसे खम्बों जैसी इमारतों से टकरायेंगे और नष्ट कर देंगे.उत्तर का मंगोल देश (चीन) अति शक्तिशाली बन कर दूसरों का जीना हराम कर देगा.उसको ओरिएंट (भारत),नया देश (अमेरिका) व रूस मिलकर हराएंगे.संसार का भयानक विनाश होगा.क्या कोई 25 वर्ष पूर्व सोच सकता था कि चीन 25 वर्ष बाद अर्थात 2010 में संसार की दूसरी आर्थिक और तीसरी सैनिक शक्ति बन जायेगा?
इस्लाम का भी पक्का विश्वास क़यामत में है.उनके ग्रंथों में क़यामत का काफी ज़िक्र है.बाईबल की कहानियों में भी क़यामत का काफी वर्णन है.यह भी कहा गया है कि क़यामत आती जाती रहेगी.
आबादी अंधाधुंध बढ़ रही है.हर 22 वर्ष में डबल हो रही है.1947 में हम 20 करोड़ थे आज 135 करोड़ हैं.तब जिस जमीन पर 1 आदमी था आज 7 हैं और 2032  मे 14 होंगे.
पंजाब के महाबली महाराजा रणजीत सिंह का राज्य ईस्ट इंडिया कम्पनी से रोपड़ की संधि के बाद तय हुआ था.वर्तमान पकिस्तान का सिंध व बलूचिस्तान का कुछ भाग छोड़ कर सारा पकिस्तान जैसे सिंध,बलूचिस्तान,पंजाब,दर्रा खैबर तक सूबा सरहद,जम्मू-कश्मीर,गिलगित,हुजा,चित्राल,लद्दाख,भारतीय पंजाब के जिले अमृतसर,जालंधर,होशियारपुर.इनमे टोटल 69 लाख की आबादी थी.आज उसी एरिया में 16 करोड़ की आबादी है.
(प्लेग)
मान लो क़यामत आती नहीं तब तो और भी बुरा हाल होगा.पिताजी बताते थे कि उनके बचपन में हर 10 वर्ष बाद महामारी फैलती थी.दो को जला कर आते थे तो तीन और जलाने/दफनाने को तैयार मिलते थे.दस वर्ष में बड़ी आबादी साफ़ हो जाती थी. हैजा,चेचक,टाईफाईड,पीलिया,प्लेग का इलाज ना होने से भरी संख्या में लोग मारे जाते थे.
फिर फ़्रांसिसी सूक्ष्म जीव विज्ञानी डॉ.लुइ पास्चर और अंग्रेज डॉ. अलेक्सांद्र फ्लेमिंग की पेनिसिलिन व दूसरी एंटीबायोटिक  की खोजों ने अचानक मृत्यु दर घटा दी.सर्जरी ने भी मृत्यु दर घटाने में योगदान दिया.तब हर व्यक्ति 10 -12 बच्चे पैदा करता था फिर भी कई परिवारों में दीया-बत्ती करने वाला कोई न बचता था.आम तौर पर 1 -2 ही बचते थे.
जमीन के अन्दर खदानों में लोहा,ताम्बा,जिस्ट,अल्युमिनियम,टाइटेनियम,सोना,चांदी,हीरे,पेट्रोलियम,कोयला ज्यादा नहीं बचे हैं.80 % बिजली कोयले से बनती है.कोयले की कमी है.कूओं के अंदर CNG का दबाव कम हो रहा है.पहाड़ों पर बर्फ कम पड़ रही है.ग्लेशियर पिघल रहे हैं,डैम सूखे का सामना नहीं कर पाते.पनबिजली जरुरत के अनुसार बढ़ नहीं सकती.2010 में पृथ्वी ग्रह 700 करोड़ की आबादी से त्राहिमाम कर रहा था.2020 में 1000 करोड़ को कैसे झेल पायेगा?
मान लो डॉ. नारमन बोरलाग जिसने 1963 में ज्यादा उपज वाला मैक्सिकन गेहूं का बीज बनाया था,उसका नया भाई आ जाये तो भी हम कुछ नहीं कर पाएंगे.ज्यादा तरल नाइट्रोजन के लिए बिजली कहाँ से लायेंगे ? पोटाश,फास्फोरस,गंधक ज्यादा कहाँ से लायेंगे? कीड़ेमार व खरपतवार नाशक क्लोरो,फ्लोरो,ब्रोमो के योगिक कहाँ से लायेंगे ? 1950 में पानी 10 फुट था आज 200 फुट है कल 300 फुट नीचे होगा.इसे निकालने को बिजली कहाँ से लायेंगे?
(पुरानी दिल्ली)
कीमतों का अंदाज़ा लगायें.1947 में गेहूं रुपये का चार सेर,सब्जी 10-15 पैसे सेर,लकड़ी जलावन 15 पैसे सेर,दाल 3 पैसे  सेर,मिटटी का तेल 4 रु. लीटर, पेट्रोल 3 रु. लीटर.1970 में दूध 1 रु. किलो,घी 5 रु. किलो,सोना 180 रु. तोला,1956 में बिजली 4 आने यूनिट थी आज 6.5/रु. यूनिट.1965 में शाहदरा दिल्ली में जमीन 8 आने गज आज 1.25 लाख रु. गज और शाहदरा सी.बी.डी. 3.5 रु.लाख गज.तब पंजाबी बाग़ 8 रु. गज आज 7 लाख रु. गज,सुन्दर नगर 7 लाख रु. गज,चाणक्य पूरी 20 लाख रु. गज कनाट प्लेस घरेलु 18 लाख रु. गज,व्यापारिक 30 लाख रु. गज.आज दूध 26 रु. किलो,घी 400 रु. किलो,उड़द घोटू 85 रु. किलो,असली हींग 10 हज़ार रु. किलो है.
1835 में भारत में सबसे ज्यादा तनख्वाह महाराजा रणजीत सिंह के फौजी की 5 रु. प्रतिमास थी.महाराजा रणजीत सिंह की मौत के बाद उनके राज्य पर कब्जा करने के बाद महाराजा गुलाब सिंह और ईस्ट इंडिया कम्पनी की संधि के बाद सारा जम्मू कश्मीर,गिलगित,हुजा,चित्राल और लद्दाख सिर्फ 70 लाख रु. में कम्पनी ने महाराजा गुलाब सिंह को बेच दिया था.आज जम्मू या श्रीनगर में कई इमारतें 100-100 करोड़ की हो चुकी हैं.10-20 करोड़ वाली इमारतों का तो हिसाब ही नहीं.
गरीब व निम्न वर्ग दिन में कई बार मरता है.वह कहता है कि कल कि क़यामत आज आ जाये.हर बड़ा आदमी,पैसे और साधन वाला आदमी कभी भी क़यामत नहीं चाहेगा.पर होगा वही जो मंजूरे ख़ुदा होगा.


-----विद्या भूषन जैन.

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