Thursday, December 16, 2010

इस बार गिरेगी धुंध..........

इस बार गिरेगी धुंध,
तो मैं तुम्हें ख़त लिखूंगा.
तुम मेरे देश चले आना.
मैं तुम्हारी पसंद के रंग,
आसमान से चुरा कर,
रख लूँगा सहेज कर.
जब भी तुम आओगे,
मैं उन्हें तुम्हें सौंप दूंगा.
धुंध,कोहरा,कुहासा,
सफ़ेद भूरा चांदनी सा.
जब उतरेगा ज़मीन पर,
तुमको ढूंढूंगा  उसमे टटोल कर.
तब क्या तुम छू दोगे मुझे ?
शायद नही.
और यूँ अकेला खड़ा रहूँगा मैं.
धुंध में,कोहरे में,कुहासे में.
तब तुम मेरे एहसासों को समेट  लेना
और देना एक वायदा बस,
कि तुम सालों साल...
आते रहोगे हर धुंध के
गुलाबी मौसम  में.
और मैं हर साल,
लिखता रहूँगा तुम्हे ख़त,
इसी तरह............

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3 comments:

  1. बहुत प्यारी कविता है...
    अब तो मैं भी प्रार्थना करूँगीं कि धुंध जरूर गिरे...
    हमारे यहाँ तो आजकल ठण्ड गिरती है, और कुछ ज्यादा ही गिरती है...

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  2. तब तुम मेरे एहसासों को समेत लेना
    और देना एक वायदा बस,
    कि तुम सालों साल...
    आते रहोगे हर धुंध के
    गुलाबी मौसम में.
    और मैं हर साल,
    लिखता रहूँगा तुम्हे ख़त,
    इसी तरह............

    अच्छी रचना...

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  3. धुंध के बारे में बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|

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