Wednesday, January 19, 2011

मैंने देखा है

*कभी देखा है तुमने ?
दर्द को कम होते !
किसी की पीड़ा को मिटते !
कैसे भूल जाता है कोई नासूर बने  दर्द को पलभर में.
कैसे मिल जाता है अवकाश किसी को बरसों की पीड़ा से !
मैंने देखा है खुद ही में ये सब
तुम्हारी मोहक हंसी जब गूंजती है कानों में,
जाने कहाँ चला जाता है दर्द,
जाने कहाँ भाग जाती है पीड़ा.
तुम्हारे दूधिया दांतों की चमक के नीचे
मैंने पीड़ा को पिसते देखा है.
तुम्हारी खनकदार हंसी को सुनकर
मैंने दर्द सिकुड़ते देखा है.*


V.B. Series.

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