Monday, January 31, 2011

मेरा एक दोस्त है दोस्तों.

मेरा एक दोस्त है दोस्तों.
मैं उसका नाम तो नहीं लिखूंगा मगर प्लीज़ आप समझ जाना के वो कौन है .
वो बहुत ही खूबसूरत है,जैसे मेरे कान्हा जी,
बहुत समझदार है,जैसे सभी होते हैं,
बहुत अच्छा है,जैसे मैं खुद हूँ
और उसका दिल....................दिल तो जैसे संगमरमर का बना है.
सफ़ेद,पवित्र और पत्थर.
उसकी आत्मा जैसे ओस की बूँद जैसी है,निर्दोष,निर्मल और ठंडी.
मुझे वो बहुत पसंद है क्योंकि मैं  उससे प्यार करता हूँ.
उसको मैं पसंद नहीं क्योंकि मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ.
उसको मैं पहले पसंद था क्योंकि उसे ये पता नहीं था के मैं उसको कितना प्यार करता हूँ,
मगर जैसे-जैसे उसे पता लगा के मैं उसे कितना चाहता हूँ वैसे-वैसे वो मुझसे दूर होता गया.
वैसे उसकी कोई गलती हो ऐसा मैं नहीं मानता क्योंकि मैं ही उसे हमेशा जताता रहता था के मैं उससे कितना प्यार करता हूँ.
उसने कभी नहीं बताया के वो भी मुझसे प्यार करता है के नहीं.
मुझे कुछ समझता भी है के नहीं.
वो हमेशा मेरी कमजोरियां मुझे गिनाता रहा,मेरी गलतियाँ मुझे बताता रहा,मेरी मानसिकता में दोष ढूंढता रहा.
इस सबमें उसे ये तो कभी दिखा ही नहीं के मैं आखिर उससे प्यार भी तो बहुत करता हूँ.
अब प्यार करने के नाते कभी मैंने कुछ शरारत कर दी तो मेरी मानसिकता ख़राब,मैंने कुछ कह दिया तो मेरी मानसिकता गलत,

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