Friday, January 21, 2011

कह तो देता तुमसे मगर.........

कह तो देता तुमसे मगर.........
के तुम्हारी ख़ामोशी परेशान करती है,
तुम्हारी बेरुखी सताती है.
न बोलना तुम्हारा दुःख पहुंचता है.
कह तो देता तुमसे मगर.............

तुमसे दूर रहना अच्छा नहीं लगता,
तुम्हारा मुझसे वो बेसाख्ता लिपटना याद आता है.
हवा में घुली तुम्हारी खुशबु मुझे सांस नही लेने देती.
कह तो देता तुमसे मगर.........

जी में आता है बहुत बार के भूल जाऊं सब कुछ,
न कुछ बोलू न कुछ सुनु.
लिपट जाऊं तुमसे और मूँद लूँ  आँखें.
मुझे मिल जाए माफ़ी....
कह तो देता तुमसे मगर.........

अब भी शाम होते ही मैं तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ,
तुम्हे देख कर सीने मैं अब भी कुछ चुभता है.
तुम्हारी मोहक मुस्कान दिल में अब भी सुलगती है...
कह तो देता तुमसे मगर.........


उन सवालों का जवाब नहीं मिला अब तक,
खामोश रह कर जो तुम किया करते थे.
नहीं सहन होता अब तुम्हारा ये गूंगा शोर....
नहीं देखा जाता खुद को आईने में..
कह तो देता तुमसे मगर.....

तुम तो भूल भी गये होगे मेरे प्यार को
मैं कैसे समेटूं अपना बिखरापन..
मेरे अँधेरे वीराने में चमकती है,
तुम्हारे दूधिया दांतों की सफेदी..
कह तो देता तुमसे मगर...

सपनों से डर के सोता नहीं मैं,
अपनों के डर से रोता नहीं मैं,
जमाने से डरता हूँ,
मगर तुम पे मरता हूँ..
कह तो देता तुमसे मगर.


V.B. Series

3 comments:

  1. खुबसूरत एहसासों को दर्शाती रचना !

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  2. बहुत सुन्दर, खुबसूरत एहसासों को दर्शाती रचना|

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